Wednesday, August 3, 2011

भ्रष्टाचार के कारण और समाधान

भारत के माननीय सांसदगणों के नाम खुला पत्र

भ्रष्टाचार के कारण और समाधान

देशभर के जागरूक नागरिकों के राष्ट्रीय सम्मेलन की भावना

1 अगस्त, 2011

माननीय सांसदगण,

भारत की संसद

नई दिल्ली

मान्यवर,

पिछले कुछ समय से देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध जो जनाक्रोश सामने आया है, उससे साफ है कि भारत की जनता भ्रष्टाचार मुक्त समाज में जीना चाहती है। पर इस मुद्दे पर सिविल सोसाइटी के एक समूह ने जिस तरह भ्रष्टाचार के लिए मुख्य रूप से राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया है और जन लोकपाल विधेयक को लेकर एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की है जिससे यह संदेश गया है कि अगर संसद जन लोकपाल विधेयक को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेती है तो देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। इस दावे से देश के बहुसंख्यक समझदार और अनुभवी लोग असहमत हैं। क्योंकि सिर्फ कानूनी उपायों से सर्वव्यापी भ्रष्टाचार का समाधान खोजने की उम्मीद केवल भ्रम है।

केवल लोकपाल से खत्म नहीं होगा भ्रष्टाचार

लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव प्रणाली सामाजिक सामूहिकता को सुनिश्चित करती है। कुछ लोगों की मांग पर चुनाव प्रणाली से हटकर किसी अलग स्वंयभू Ÿkk केन्द्र की स्थापना करना निरंकुश Ÿkk को जन्म दे सकता है। संविधान के निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा होगा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के गरिमामय पद पर बैठने वाले भी भ्रष्ट आचरण करेंगे। पर दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है। ऐसे में लोकायुक्त का व्यवहार कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?

भ्रष्टाचार के बारे में राष्ट्रीय सम्मेलन की राय

रोचक बात यह है कि इस समूह ने देश में ऐसा संदेश देने की कोशिश की है कि जो लोग इस विधेयक के समर्थन में नहीं हैं, वे भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में साथ नहीं हैं। यह बहुत बचकानी प्रवृत्ति है। ठीक वैसे ही जैसे कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जा¡र्ज बुश ने कहा था कि आतंकवाद के विरूद्ध उनकी लड़ाई में जो देश उनके साथ नहीं है वे आतंकवादियों के साथ हैं। यह बयान हास्यास्पद था। आतंकवादियों का विरोध करने का अर्थ अमरीका का समर्थन करना नहीं हो सकता। इसी तरह जन लोकपाल विधेयक

उल्लेखनीय है कि जिन लोगों ने जन लोकपाल बिल तैयार किया है, वही प्रमुख लोग भ्रष्टाचार के विरूद्ध देश में लड़े गए सबसे बड़ेजैन हवाला कांडको पटरी से उतारने में सक्रिय रहे थे। तब उन्होंनेसी.वी.सी.’ बनाने का हल्ला मचाकर असली मुद्दा ठंडा करवा दिया था। अब जन लोकपालका नया प्रस्ताव दे रहे हैं। (पढ़ें पुस्तकभ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार’, अध्याय 10 11)

के अधकचरेपन से सहमत होने का यह अर्थ नहीं कि देश की 122 करोड़ जनता भ्रष्टाचार के समर्थन में हैं।

इस असंमजस के माहौल में देश के काफी जागरूक पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, Ÿkk के सर्वोच्च शिखर पर सर्वोच्च न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध देश में ऐतिहासिक लम्बा संघर्ष लड़ चुके योद्धाओं, भ्रष्टाचार के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, अपराध शास्त्र, मनोवैज्ञानिक सांस्कृतिक पक्षों का लम्बे समय से अध्ययन, शोध अध्यापन करने वाले विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ प्रोफेसरों, भ्रष्टाचार की जाँच से जुड़े रहे वरिष्ठ अधिकारियों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, ग्रामीण अंचल के प्रतिनिधियों, विभिन्न दलों के राजनेताओं, न्यायविद्ks और छात्रों के एक समूह ने 16-17 जुलाई को दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में दो दिन भ्रष्टाचार के कारण और निवारण पर चिंतन और मनन किया। यह सम्मेलन बिना राग-द्वेष और भावावेश के गंभीर वातावरण में सम्पन्न हुआ। जिससे कुछ ठोस परिणाम निकल सकें। सम्मेलन निम्न नतीजों पर पहुँचा है, जो आपके विचारार्थ यहाँ प्रस्तुत हैं-

1. देश में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के लिए देश के आर्थिक विकास का प्रारूप काफी हद तक जिम्मेदार है। जो किसानों, मजदूरों और जनजातियों के नैसर्गिक साधनों का वीभत्स दोहन कर उन्हें जड़ से उखाड़ रहा है और कुछ ताकतवर लोगों को बेहद धनी बना रहा है।

2. उद्योगजगत बड़े भ्रष्टाचार के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है, जो सरकारी नीतियों को अपने हित में प्रभावित कर, जनता की कीमत पर, भारी मुनाफा कमाता है।

3. उद्योगजगत के ही भीतर एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सरकारी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता,जवाबदेही और विश्वसनीयता देखना चाहता है, जिससे उद्योगजगत में स्वस्थ व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सके। पर कोई सरकार उनकी बात नहीं सुनती।

4. कालाधन जितना भारत के बाहर है, उससे कहीं ज्यादा देश के भीतर चलन में है। जिसे रोकने का एक ही तरीका है कि आयकर कानून को व्यवहारिक और प्रभावशाली बनाया जाए। जिससे आम आदमी को कालाधन सृजन की कोई आवश्यकता पड़े।

5. जबसे देश में उदारीकरण हुआ है, तबसे अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने देश में भारी घोटाले किए हैं।

6. मीडिया का नियन्त्रण औद्योगिक हाथों में केन्द्रित होने के कारण मीडिया अपने मालिकों के आर्थिक हितों के विरूद्ध जाने का दुस्साहस नहीं कर पा रहा। इतना ही नहीं वह मालिकों के व्यवसायिक युद्ध का हथियार बनता जा रहा है। ऐसे में निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले बैचेन हैं और कुछ कर नहीं पा रहे।

7. देश के बहुसंख्यक समाज जो किसान और मजदूर हैं, तो भ्रष्ट हैं और ही उसके पास भ्रष्ट होने का कोई अवसर है।

8. राजनेता चुनाव प्रणाली में भारी दोष के कारण भ्रष्टाचार के कारण और शिकार, दोनों बने हुए हैं।

9. करोड़ों देशवासियों के खून-पसीने की कमाई पर अपने लिए तमाम आर्थिक सुरक्षा/साधन जुटाने के बावजूद इस देश की नौकरशाही लिप्सा के कारण भ्रष्टाचार में लिप्त है। जो ईमानदार हैं, उन्हें काम नहीं करने दिया जाता।

10. भ्रष्टाचार केवल रिश्वत या कमीशन लेना ही नहीं, खाद्यान्न, दूध, फल, सब्जी, तेल, दवाईयाँ, ईंधन आदि में मिलावट करना भी समाज के लिए घातक हो रहा है और भ्रष्टाचार का वीभत्स नमूना है।

11. न्याय व्यवस्था का औपनिवेशिक स्वरूप और उसमें व्याप्त भाई-भतीजावाद देश में भारी भ्रष्टाचार को जन्म दे रहा है।

12. भ्रष्टाचारी को कड़ी सजा मिलना और मुकदमों का लम्बा खिंचना भी बढ़ते भ्रष्टाचार का कारण बन गया है।

13. उपभोक्ता संस्कृति ने नैतिकता और सदाचार के मूल्यों को पीछे खदेड़कर साम-दाम-दण्ड-भेद से आर्थिक प्रगति करना लगभग हर सक्षम व्यक्ति का लक्ष्य बना दिया है। जिनका लक्ष्य यह नहीं है, वे इस माहौल में घुटनभरा जीवन जी रहे हैं।

14. भ्रष्टाचार के अनेक मनोवैज्ञानिक कारण हैं। क्योंकि एक ही परिस्थिति में पलने-बढ़ने वाले दो व्यक्तिअलग-अलग मान्यता के पाए जाते हैं। एक को भ्रष्टाचार व्यवहारिक लगता है और दूसरे को जघन्य अपराध। इसलिए भ्रष्टाचार के मनोवैज्ञानिक कारणों का निदान किए बिना इसका खात्मा संभव नहीं है।

15. देश में नैतिक नेतृत्व का अभाव राजनीति में ही नहीं, धर्म और समाज के क्षेत्र में भी व्यापक हो गया है जिससे समाज में भटकन पैदा हो रही है।

भ्रष्टाचार कम करने के ठोस व्यवहारिक उपाय

ऐसे अनेक अनुभवजन्य विचार इस सम्मेलन में विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गये जिन्हें शीघ्र ही एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का कार्य जारी है। किन्तु संसद के वर्तमान सत्र में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोकपाल विधेयक को लेकर जो पहल की जा रही है, उससे हमें लगा कि सम्मेलन की सिफारिशों को संक्षेप में आपके विचारार्थ प्रस्तुत किया जाए। सम्मेलन का मानना है -

1. पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त समाज दुनिया के किसी भी मुल्क में नहीं है और किसी काल में नहीं रहा। इसलिए भ्रष्टाचार का प्रतिशत कम करने का प्रयास किया जा सकता है। उससे मुक्त होना संभव नहीं है।

2. भ्रष्टाचार के लिए केवल राजनेता पूरी तरह जिम्मेदार नहीं हैं। समाज के अन्य प्रभावशाली वर्ग भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए जन लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार की समस्या को हल नहीं कर सकता।

3. लोकपाल के अधीन कार्यपालिका, न्यायपालिका को लाकर तो भ्रष्टाचार के विरूद्ध सही जाँच करना संभव होगा और ही अपराधियों को सजा देना। हमारा मानना है कि लोकतंत्र की संस्थाओं की स्वायŸkk और कार्यक्षेत्र को देखते हुए न्यायपालिका की जबावदेही के लिए एक न्यायायिक जबावदेही आयोगका गठन होना चाहिए। कार्यपालिका के भ्रष्टाचार से निपटने के लिएकेन्द्रीय सतर्कता आयोगका दायरा व्यापक कर उसे पूरी स्वायŸkk देनी चाहिए। जैसा कि सर्वोच्च न्यालय केविनीत नारायण बनाम भारत सरकारफैसले के तहत निर्देश दिए गए थे। विधायिका के सदस्यों के आचरण की जाँच के लिएलोकपालहोना चाहिए और बड़े औद्योगिक घरानों, अन्तर्राष्ट्रीय बैंकों सिविल सोसाइटी के भ्रष्टाचार को जाँचने के लिएविŸkh जबावदेही आयोगका गठन किया जाना चाहिए। जिससे हर क्षेत्र का पहरेदार स्वतंत्रता से काम कर सके। फिर संविधान के मौजूदा ढांचे में जो जाँच करने और सजा देने की प्रक्रिया है, उसे समयबद्ध, पारदर्शी और प्रभावी बनाया जाए।

4. हमारा सुझाव है कि चुनाव सुधारों के लिए वर्षों से लम्बित पड़ी भारतीय चुनाव आयोग की सिफारिशों को तुरंत लागू किया जाए राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबन्दी लगायी जाए। चुनावों के लिए धन मुहैया कराने की पारदर्शी व्यवस्था स्थापित की जाए। जिससे प्रत्याशी बिना किसी दबाव के स्वतंत्र आचरण कर सके और सफल होने पर जनता के हक में संसद/विधानसभाओं में अपनी भूमिका निभा सके।

5. प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर कड़ा नियन्त्रण हो उनके दोहन के निर्णय में स्थानीय लोगों कीभागीदारी सुनिश्चित की जाए।

भ्रष्टाचार पर राजनैतिक बयानबाजी नहीं, ठोस समाधान की जरूरत

आपको याद होगा कि संसद की 50 वीं सालगिरह पर एक विशेष अधिवेशन भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण पर विचार करने के लिए बुलाया गया था। उसके बाद भी आप लोगों ने कोई ऐसा ठोस कदम नहीं उठाया जिससे इन समस्याओं का हल निकलता। हवाला कांड के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करके बहुदलीय संसदीय समिति ने एक लुंज-पुंज विधेयक तैयार कर दिया। जिससे भ्रष्टाचार से निपटने में कोई मदद नहीं मिली। सर्वोच्च न्यायालय के भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग चलाने में भी आप सामने नहीं आये। इसलिए हम मानते हैं कि संसद के मौजूदा सत्र में पारस्परिक दलगत दोषारोपण से बचकर यदि आप सभी माननीय सांसदगण उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार करें तो समाज की हताशा दूर होगी। साथ ही देश विकास के रास्ते पर ज्यादा ठोस कदमों से बढ़ सकेगा और राजनैतिक व्यवस्था और मतदाता के बीच जो अविश्वास की खाई बढ़ती जा रही है, उसे भी पाटने में आपको सफलता मिलेगी। इस राष्ट्र के लिए आपके सक्रिय योगदान की आकांक्षा के साथ समस्त शुभकामनाऐं।

निवेदक

जन सतर्कता आयोग

www.peoplesvigilancecommission.org

सी-6/28, सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया, नई दिल्ली-110016, फोनः 011-26566800 26519080


भ्रष्टाचार पर राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने विचार रखने वाले विद्वतगण

1. श्री जे. एम. गर्ग, सदस्य, केन्द्रीय सर्तकता आयोग, नई दिल्ली

2. प्रो. के. एन. काबरा, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, नई दिल्ली

3. श्री अविनाश धर्माधिकारी, पू. आई..एस., पुणे

4. डा¡.अश्वनी शर्मा, ऐसोसिऐट प्रोफेसर, दिल्ली यूनिर्वसिटी

5. प्रो. एम. जेड. खान, अपराधशास्त्र विशेषज्ञ, नई दिल्ली

6. प्रो. जी. एस. वाजपेयी, चेयरमैन, सेंटर फाW क्रिमिनल जस्टिस एडमिन, भोपाल

7. डा¡.वी. डी. मताले, अपराधशास्त्री, जबलपुर

8. श्री सुधीर कुमार, पू. आई.पी.एस. पू. सदस्य, केन्द्रीय सतर्कता आयोग, नई दिल्ली

9. श्री भरत वाखलु , टाटा ग्रुप, नई दिल्ली

10. श्री सुधीर जैन, पत्रकार, जनसत्ता (इण्डियन एक्सप्रेस ग्रुप)

11. प्रो. निमेश एस देसाई, निदेशक, इंस्टि. W ह्यू. विहेवियर एण्ड एलाइड साइंस, नई दिल्ली

12. प्रो. हरगोपाल, डीन, स्कूल W सोशल साइंसेज, यूनिर्वसिटी W हैदराबाद, हैदराबाद

13. प्रो. आर एन लोहकर, इलाहाबाद यूनिर्वसिटी, इलाहाबाद

14. श्रीमति अनुपमा झा, अधिशासी निदेशक, ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल इंडिया, नई दिल्ली

15. श्री विनोद शर्मा, पाWलिटिकल एडिटर, हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्ली

16. श्रीमति आरती जेराथ, सीनियर एडिटर, टाइम्स W इण्डिया, नई दिल्ली

17. श्री रंजीत देवराज, ब्यूरो चीफ, इंटर प्रेस सर्विस (पेरिस), नई दिल्ली

18. श्री वी. वेंकटेशन, फ्रन्टलाइन, नई दिल्ली

19. श्री विनीत नारायण, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली (www.vineetnarain.net)